नाग पंचमी हर साल क्यों मनाया जाता है?
परिचय
AstroSawal पर आप सभी का फिर से स्वागत है। आज के ब्लॉग में हम एक ऐसे प्राचीन हिंदू त्योहार की बात करेंगे जो सभी भारतीयों के ह्रदय में एक विशेष स्थान रखता है -नागपंचमी।
इस त्योहार का हमारी सभ्यता और संस्कृति से बहुत ही गहरा संबंध है,और इसलिए आज भी इस त्योहार को भारत में बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
नाग पंचमी का त्योहार प्रत्येक वर्ष श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी कोमनाया जाता है और २०२३ में नाग पंचमी 21अगस्त को मनाई जाएगी।
नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने से मनुष्य को जीवन में आध्यात्मिक शक्ति,अपार धन और मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
आइये जानते है की इस पर्व का हिन्दू धर्म में क्या महत्व है। साथ ही इसको मनाने की पौराणिक कथा भी जानेंगे और इससे जुड़े अद्भुत लाभों पर भी चर्चा करेंगे।
महत्व
हिन्दू संस्कृति पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति सब के साथ आत्मीय संबंध जोड़ ने का प्रयास करती है और इसी क्रम में नाग को देव के रूप में स्वीकार करती है जिससे हमें सनातन धर्म की विशालता का दर्शन होता है। नागदेवता को हिंदू पौराणिक कथाओं और अध्यात्म में एक विशेष स्थान दिया गया है। यहाँ समुद्र मंथन में सांपका प्रयोग और शंकर भगवान के गले के सांप को दिखा सकते हैं|
नाग को एक शक्तिशाली और रहस्यमय जीव माना जाता है,और ज्योतिष में यह अधिकांशतः प्रजनन,सुरक्षा और परिवर्तन का एक प्रतीक होता है।
व्यावहारिक दृष्टि से देखें तो भारत सदियों से एक कृषि प्रधान देश रहा है और साँप हमारे खेतों की रक्षा भी करते हैं इसलिए उसे क्षेत्रपाल कहते हैं। जो जीव-जंतु,चूहे इत्यादि फसल की हानि करने वाले तत्व हैं, उनका नाश कर के साँप हमारे खेतों को हरा भरा रखते हैं। साँप के गुण देखने के लिए गुण ग्राही और शुभ ग्राही दृष्टि होनी चाहिए।
नाग पंचमी का पर्व नाग देवता का आभार व्यक्त करने,उनका आशीर्वाद प्राप्त करने,और मनुष्य और प्रकृति के बीच संतुलन को स्वीकार करने का एक तरीका है।
नाग पंचमी के पीछे की कहानी
नाग पंचमी के मनाये जाने के पीछे कई कि वदंतिया है लेकिन भगवान कृष्ण से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा इस त्योहार के मूल से जुड़ी है।
"प्राचीन काल में गोकुल गांव के निवासियों में कालिया नामक एक सर्प राक्षस का अत्यधिक आतंक था। कालिया यमुना नदी में निवास करता था और आस पास के मनुष्यों और पशुओं में उसका भय व्याप्त था।
भगवान कृष्ण उस समय अपनी बाल अवस्था में थे,फिर भी उन्होंने कालिया के आतंक से गांव वालों को मुक्ति दिला ने का निश्चय किया। और इस उद्देश्य से कान्हा यमुना के तट पर पहुंचे और कालिया को ललकारा। एक भयंकर युद्धके बाद, कान्हा ने सर्प को पराजित कर के वश में कर लिया लेकिन उसे कोई दण्ड नहीं दिया। भगवान ने कालिया की सारी उद्दंडता को क्षमा कर दिया और उसे एक अवसर दिया की वह यमुना जी और गोकुल को छोड़ कर चलाजाए।
भगवान कृष्ण की यह दयालुता भी नाग पंचमी मनाये जाने का एक कारक हैं।"
काल सर्प दोष का निवारण
एक बार नागराज तक्षक बालक रूप धारण कर काशी में संस्कृत की शिक्षा लेने हेतु आये,परन्तु गरूड़ देव को इसकी जानकारी हो गयी,और उन्होंने तक्षक पर हमला कर दिया। आखिर में गरूड़देव को तक्षक के गुरु जी के प्रभाव के कारण तक्षक को अभय दान देना पड़ा परन्तु आक्रमण के समय बचने के लिए तक्षक एक कुएं में छिप गए थे जो की पाताल लोक का द्वार था।
तब से यह स्थाननाग कुआँ के नाम से जाना जाता है और नाग पंचमी के दिन वाराणसी में नाग कुएं पर बहुत बड़ा मेला लगता है। इस एक कुएं के अन्दर सात और कुएं हैं। पंचमी के दिन कुएं का सारा पानी बाहर निकाला जाता है उसके बाद अन्दर जो शिवलिंग स्थापित है उसका श्रृंगार कर के पूजा-पाठ किया जाता है। इसके बाद 1 घंटे में अपने आप कुआँ वापस भर जाता है।
मान्यता है कि जोभी नाग पंचमी के दिन यहाँ पूजा अर्चनाकर नाग कुएं का दर्शन करता है उसकी जन्मकुन्डली के काल सर्पदोष का निवारण होजाता है।
अन्य लाभ
मान्यता है की नागपंचमी का व्रत करने से सर्व कामना पूर्ति होती है परन्तु सांस्कृतिक और धार्मिक पहलुओं के अतिरिक्त भी इस त्योहार को मनाने के कुछ अद्भुत लाभ हैं।
यह मनुष्य और प्रकृति के संबंधों में सामंजस्य स्थापित करता है और साथ ही प्रकृति के प्रति सम्मान और सद्भाव की भावना को बढ़ावा देता है।
आज के इस व्यस्त समय में यह परिवारों को एकजुट होने, अपने रिश्तों को मजबूत करने और संस्कृति को साझा करने का अवसर देता है।
सांपों की पूजा को सांपों के डसने और अन्य सर्प-संबंधी खतरों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए माना जाता है।
यह सभी प्राणियों,बड़े और छोटे के साथ सह-अस्तित्व के महत्व की याद दिलाता है।
नाग पंचमी कैसे मनाई जाती है
नाग पंचमी के दिन नागदेव का दर्शन करना चाहिए। बांबी की पूजा करनी चाहिए। नागदेव की सुगंधित पुष्पव चंदन से ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि नागदेव को सुगंध प्रिय है।
पूजन के लिए दीवार पर गेरू पोत कर पूजन का स्थान बनाया जाता है। फिर कच्चे दूध में कोयला घिसकर उससे गेरू पुती दीवाल पर घर जैसी आकृति बनाते हैं और उस में अनेक नागदेवों की आकृति बनातेहैं। कुछ स्थानों परसोने, चांदी, काठ व मिट्टी की कलम तथा हल्दी व चंदन की स्या ही से अथवा गोबर से घर के मुख्य दरवाजे के दोनों बगलों में पाँच फनवाले नागदेव अंकित कर पूजते हैं।
सर्वप्रथम नागों की बांबी में एक कटोरी दूध चढ़ा आते हैं और फिर दीवालपर बनाए गए नाग देवता की दधि,दूर्वा,कुशा,गंध,अक्षत,पुष्प,जल,कच्चा दूध,रोली और चावल आदिसे पूजन कर सेंवईव मिष्ठान से उनका भोगलगाते हैं। इसके पश्चातआरती कर कथा श्रवणकरना चाहिए।
निष्कर्ष
नाग पंचमी हमें प्रकृति के साथ हमारे संबंध के बारे में याद दिलाती है। यह हमें सिखाती है कि हमको प्रकृति का सम्मान और संरक्षण करना चाहिए,और प्रकृति के साथ शांति से रहना चाहिए। यह हमें यह भी सिखाती है कि प्रकृति शक्तिशाली है, लेकिन यह दयालु भी है। प्रकृति हमें जीवन देती है,और हमें संसाधन प्रदान करती है। लेकिन प्रकृति को भी हमारे संरक्षण की आवश्यकता है।अगर हम प्रकृति को नहीं बचाएंगे तो हम भी नष्ट हो जायेंगे।
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